षष्ठम विश्व हिंदी सम्मेलन
छठा विश्व हिंदी सम्मेलन लंदन में १४ से १८ सितंबर १९९९ तक आयोजित किया गया। यूके
हिंदी समिति, गीतांजलि बहुभाषी समुदाय और बर्मिंघम और भारतीय भाषा संगम, यॉर्क
द्वारा इसके लिए राष्ट्रीय आयोजन समिति का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष डॉ. कृष्ण
कुमार और संयोजक डॉ. पद्मेश गुप्त थे। सम्मेलन का केंद्रीय विषय था- हिंदी और भावी
पीढ़ी।
सम्मेलन में विदेश राज्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भारतीय
प्रतिनिधिमंडल ने भाग लिया। प्रतिनिधिमंडल के उपनेता प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ.
विद्यानिवास मिश्र थे। इस सम्मेलन का ऐतिहासिक महत्त्व इसलिए है क्योंकि यह हिंदी
को राजभाषा बनाए जाने के ५०वें वर्ष में आयोजित किया गया। यही वर्ष संत कबीर की छठी
जन्मशती का भी था।
सम्मेलन में २१ देशों के ७०० प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें भारत से ३५० और
ब्रिटेन से २५० प्रतिनिधि शामिल थे।
पारित मंतव्य:
·
विश्व भर में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन, शोध, प्रचार-प्रसार और हिंदी सृजन में समन्वय के
लिए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय केंद्र सक्रिय भूमिका निभाए।
·
विदेशों में हिंदी शिक्षण,
पाठ्यक्रमों के निर्धारण, पाठ्य पुस्तकों
के निर्माण, अध्यापकों के प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था भी
विश्वविद्यालय करे और सुदूर शिक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाए।
·
मॉरीशस सरकार अन्य हिंदी-प्रेमी सरकारों से परामर्श कर शीघ्र विश्व हिंदी
सचिवालय स्थापित करे।
·
हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में मान्यता दी जाए।
·
हिंदी की सूचना तकनीक के विकास, मानकीकरण, विज्ञान एवं तकनीकी लेखन,
प्रसारण एवं संचार की अद्यतन तकनीक के विकास के लिए भारत सरकार एक
कंद्रीय एजेंसी स्थापित करे।
·
नई पीढ़ी में हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए आवश्यक पहल की जाए।
·
भारत सरकार विदेश स्थित अपने दूतावासों को निर्देश दे कि वे भारतवंशियों
की सहायता से विद्यालयों में एक भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण की व्यवस्था करवाएं।
|