विचार मंच 2017

विचार मंचः मोहन राकेश तथा ‘आधे-अधूरे’ का शिक्षण

27 जुलाई, 2017 को स्वराज भवन, लालमाटी, मॉरीशस में विश्व हिंदी सचिवालय, शिक्षा व मानव संसाधन, तृतीयक शिक्षा एवं वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्रालय तथा भारतीय उच्चायोग, मॉरीशस के संयुक्त तत्वावधान में "मोहन राकेश तथा ‘आधे-अधूरे’ का शिक्षण" विषय पर विचार-मंच का आयोजन किया गया। इस अवसर पर महात्मा गांधी संस्थान के पूर्व एसोसिएट प्रो. डॉ. संयुक्ता भोवन-रामसारा मुख्य वक्ता रहीं। शिक्षा व मानव संसाधन, तृतीयक शिक्षा एवं वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्रालय के प्रबंधक, श्री राजीव कुमार ओखोजी, कला एवं संस्कृति मंत्रालय के कला अधिकारी, श्री राकेश श्रीकिसुन, मणिलाल डॉक्टर एस.एस.एस. के हिंदी शिक्षक, श्री लेखराजसिंह पांडोही तथा बी.ए. हिंदी की छात्रा सुश्री प्रियंका सुखलाल ने भी कार्यक्रम में अपने वक्तव्य दिए।

सचिवालय के महासचिव, प्रो. विनोद कुमार मिश्र ने उपस्थित महानुभावों, अतिथियों, हिंदी प्रेमियों, शिक्षकों एवं छात्रों का स्वागत किया और यह कहा कि ‘नाटक वह विधा है, जो जन-मानस तक सीधे पहुँचती है’ ।

श्री राजीव कुमार ओखोजी ने अपने वक्तव्य में शिक्षकों से आग्रह किया कि वे अपने छात्रों को साहित्य पढ़ने हेतु प्रेरित करें, क्योंकि भाषा और साहित्य का गहरा संबंध है। उन्होंने कहा कि ‘विचार-मंच के इस आयोजन के बाद मुझे विश्वास है कि छात्र नाटकों में अधिक से अधिक रुचि दिखाएँगे।’

श्री राकेश श्रीकिसुन ने ‘आधे-अधूरे’ नाटक की रंगमंचीयता पर अपने विचार व्यक्त किए तथा अभिनय पर बात करते हुए कहा कि ‘अभिनय के लिए प्रत्येक पात्र अपने शारीरिक अंगों, अपनी आवाज़ तथा अपने मन का प्रयोग करता है। नाटक में अनेक रस पाए जाते हैं, जो अभिनय के दौरान अभिव्यक्त होते हैं। ‘आधे-अधूरे’ नाटक में साधारण प्रकाश की ज़रूरत है।’ अंत में उन्होंने कहा कि भारत में और अन्य देशों में ‘आधे-अधूरे’ नाटक का मंचन कई बार हुआ तथा रंगमंच की दृष्टि से यह एक श्रेष्ठ नाटक है।

कार्यक्रम के अंतर्गत ‘नाट्य दीप’ द्वारा ‘आधे-अधूरे’ नाटक के प्रारंभिक भाग का मंचन हुआ। इसके बाद मुख्य वक्ता डॉ. संयुक्ता भोवन-रामसारा ने ‘आधे-अधूरे’ पर शोधपूर्ण वक्तव्य प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने सर्वप्रथम मोहन राकेश के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला और नाटक के मुख्य पात्रों के चरित्रों का विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि ‘अव्यवस्थित, विश्रृंखल जीवन के अधूरेपन और अस्त-व्यस्तता के बीच से पूर्णता की तलाश ने मोहन राकेश को एक अलग व्यक्तित्व दिया।

मोहन राकेश के अधूरेपन की अनुभूति हिंदी जगत् के लिए एक वरदान सिद्ध हुई। वे अनुभवों के दौर से न गुज़रे होते, तो ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘लहरों का राजहंस’, ‘आधे-अधूरे’ जैसी महान् कृतियाँ हमारे सामने नहीं आतीं।’

तत्पश्चात् ‘नव द्वीप’ नाटय़शाला ने ‘आधे-अधूरे’ नाटक के अंतिम भाग का मंचन किया।

श्री लेखराज सिंह पांडोही ने ‘आधे-अधूरे’ के शिक्षण पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने नाटक के शिक्षण में भाव, रस और अभिनय के महत्व का रेखांकन किया।

बी. ए. हिंदी की छात्रा सुश्री प्रियंका सुखलाल ने ‘आधे-अधूरे’ के अध्ययन पर अपने अनुभव व्यक्त करते हुए कहा कि ‘इस नाटक में चित्रित समस्याओं के माध्यम से मेरे विचार, बोल एवं व्यवहार में परिवर्तन आया है। इस दृष्टि से मैं हिंदी छात्रों को विशेष रूप से प्रोत्साहित करना चाहती हूँ कि वे हिंदी नाटय़ साहित्य का लाभ उठाते हुए ‘आधे-अधूरे’ का अध्ययन अवश्य करें और अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाएँ’

अंत में परिचर्चा-सत्र के दौरान उपस्थित श्रोताओं ने अपने विचार दिए। इस अवसर पर हिंदी शैक्षणिक एवं प्रचारक संस्थाओं के प्रतिनिधियों, मॉरीशसीय हिंदी साहित्यकारों, हिंदी शिक्षकों व छात्रों ने अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। धन्यवाद-ज्ञापन एवं मंच-संचालन, विश्व हिंदी सचिवालय की उपमहासचिव डॉ. माधुरी रामधारी ने किया।

‘विचार-मंच : ‘युवकों द्वारा लघुकथा-लेखन’’

5 अक्टूबर, 2017 को इंदिरा गांधी भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, फ़ेनिक्स, मॉरीशस में विश्व हिंदी सचिवालय द्वारा शिक्षा व मानव संसाधन, तृतीयक शिक्षा व वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्रालय तथा भारतीय उच्चायोग, मॉरीशस के संयुक्त तत्वावधान में ‘युवकों द्वारा लघुकथा लेखन’ विषय पर विचार-मंच का आयोजन किया गया। शिक्षा मंत्रालय के प्रतिनिधि ज़ोन 1 के प्रशासक के रूप में श्री निरंजन बिगन तथा मॉरीशस के वरिष्ठ प्रसिद्ध हिंदी लेखक श्री रामदेव धुरंधर ने कार्यक्रम में अपने वक्तव्य दिए।

सचिवालय के महासचिव, प्रो. विनोद कुमार मिश्र ने उपस्थित सभी अतिथियों व हिंदी प्रेमियों का स्वागत करते हुए कहा कि सचिवालय को पुरानी और नई पीढ़ी के बीच सेतु बनाना ही इस आयोजन का उद्देश्य है। उन्होंने यह भी कहा कि "आप सबको एक जगह संगठित करने की ज़रूरत है और आज इस संगठन का दायित्व हम सब का है।"

श्री निरंजन बिगन ने रचनाकारों को सृजनात्मक लेखन की ओर बढ़ने हेतु प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि "हमारी जितनी भी संस्थाएँ हैं या तो सम्मिलित रूप से या किसी भी तरीके से कुछ ऐसी गतिविधि अपनाएँ, जिससे युवकों के लिए उचित अवसर, उचित प्रोत्साहन और संसाधन प्रस्तुत हों और आनेवाले दिनों में वे सृजनात्मक लेखन की ओर बढ़ें।"

प्रसिद्ध लेखक श्री रामदेव धुरंधर ने युवा रचनाकारों के मार्गदर्शन हेतु इस संयोजन की सराहना की तथा कहा कि "मॉरीशस की धरती पर लघुकथा-लेखन की तमाम संभावनाएँ हैं तथा लेखन की निरंतरता से ही लघुकथा को पल्लवित और पुष्पित किया जा सकता है।"

भारतीय उच्चायोग की द्वितीय सचिव डॉ. (श्रीमती) नूतन पाण्डेय ने श्री रामदेव धुरंधर के साहित्य पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि "उनके साहित्य में विविधता है।" उन्होंने लघुकथा-लेखन एवं गद्य क्षणिका में अंतर का उल्लेख भी किया तथा नवोदित लेखकों को लिखने की प्रेरणा दी।

समारोह के दौरान परिचर्चा-सत्र का आयोजन किया गया था, जिसमें उपस्थित महानुभावों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।

समारोह में 19 युवकों ने स्वरचित लघुकथाओं का पाठ किया।

  • सुश्री ज्ञानेश्वरी गुरझन लघुकथा का विषय : ‘काश वह मेरे साथ होते’
  • श्री विश्वानंद पतिया लघुकथा का विषय : ‘शब्द शक्ति’
  • डॉ. तनूजा पदारथ-बिहारी लघुकथा का विषय : ‘सिफ़ारिश’
  • श्री धनश्याम शर्मा मोहाबीर (रितेश) लघुकथा का विषय : ‘ज़िंदगी में अगर रीवाइन्ड बटन होता तो कितना अच्छा होता’
  • श्रीमती तीना जगु-मोहेश लघु कथा का विषय : ‘मनु की मनोव्यथा’
  • श्री दिनेश सुका लघुकथा का विषय : ‘गायत्री की अतिथि’
  • श्रीमती श्रद्धांजलि हजगैबी-बिहारी लघु कथा का विषय : ‘छोटा-सा लड़का’
  • श्री श्रवीण शर्मा बेनिदिन लघुकथा का विषय : ‘लाचारी’
  • सुश्री शिक्षा धनपत लघुकथा का विषय : ‘कुसंग से बचाव’
  • श्री सहलिल तोपासी लघुकथा का विषय : ‘दीवार’
  • सुश्री उर्वशी जोलिम लघुकथा का विषय : ‘हँसना और हँसाना’
  • श्री सोमदत्त काशीनाथ लघुकथा का विषय : ‘पापा नहीं आए’
  • श्रीमती करिश्मा रामझीतन-नारायण लघुकथा का विषय : ‘मेरा कर्तव्य’
  • श्री जिष्णु हरिशरण लघुकथा का विषय : ‘आसक्त’
  • सुश्री समानता अजूबा लघुकथा का विषय : ‘बीस रुपये का सिक्का’
  • श्री मानव बुधन लघुकथा का विषय : ‘यमदूत के लिए वेकेन्सी’
  • श्रीमती पार्वती पुन्या-जोसुरी लघुकथा का विषय : ‘तेज़ाब’
  • श्री राकेश श्रीकिसून लघुकथा का विषय : ‘आसान जीवन की खोज’
  • श्री वशिष्ठ कुमार झमन लघुकथा का विषय : ‘छुट्टी वाली सीख’

- विश्व हिंदी सचिवालय की रिपोर्ट