विश्व हिंदी सचिवालय ने 11 फरवरी, 2010 को इंदिरा गांधी भारतीय सांस्कृतिक केंद्र में अपने आधिकारिक कार्यारंभ की द्वितीय वर्षगांठ के अवसर पर 'संयुक्त राष्ट्र में हिंदी: हमारी तैयारियाँ' विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया । इस संगोष्ठी में बीज-वक्तव्य देने के लिए सुप्रसिद्ध हिंदी विद्वान श्री नारायण कुमार जी को भारत से आमंत्रित किया गया था । इस अवसर पर सचिवालय की शासी परिषद के सदस्य माननीय श्री सत्यदेव टेंगर और भारतीय उच्चायोग के द्वितीय सचिव डॉ. जयप्रकाश कर्दम ने भी सारगर्भित व्याख्यान दिए । शासी परिषद के अन्य सदस्य श्री अजामिल माताबदल जी ने भी अपनी उपस्थिति एवं आशीर्वचनों से संगोष्ठी को गरिमा प्रदान की ।
विश्व हिंदी सचिवालय के महासचिव डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्र ने संगोष्ठी में भाग लेने आए समस्त विद्वानों, हिंदी सेवियों एवं हिंदी प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करते हुए इस बात के प्रति प्रसन्नता व्यक्त की कि संपूर्ण मॉरीशस में महाशिवरात्रि की व्यस्तताएँ होने के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में संगोष्ठी में भाग लेने आना वाकई आप सबका हिंदी के प्रति प्रेम दर्शाता है । उन्होंने सभी शिव भक्तों को महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ दीं । उन्होंने संगोष्ठी के लिए रखे गए विषय की ओर सबका ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि अब केवल भाषणों से काम नहीं चलनेवाला । अब समय आ गया है कि हम सबको बैठकर इस बात पर गंभीरता से विचार करना है कि आखिर हमें वे कौन-कौन-सी और कैसी तैयारियाँ करनी होंगी जिससे कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने का मार्ग सुगम और प्रशस्त हो सके । आज की संगोष्ठी में इन्हीं बातों पर भारत से आमंत्रित हिंदी विद्वान श्री नारायण कुमार, सचिवालय की शासी परिषद के माननीय सदस्य श्री सत्यदेव टेंगर और भारतीय उच्चायोग के द्वितीय सचिव डॉ. जय प्रकाश कर्दम विस्तार से प्रकाश डालेंगे ।
संगोष्ठी के प्रथम वक्ता माननीय श्री सत्यदेव टेंगर ने इस अवसर पर न केवल कुछ दस्तावेज़ विद्वानों को दिखाए, बल्कि उन प्रावधानों पर भी प्रकाश डाला जिसके ज़रिये हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाना संभव हो सकेगा । उन्होंने कहा कि हिंदी को लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए कूटनीति से काम लेने की आवश्यकता है । इसके लिए फ्राँकोफोनी के सदस्य देशों को तैयार करना होगा । बल्कि अफ्रीका में सादेक के सदस्य देशों की भी सहायता ली जा सकती है । उन्होंने कहा कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने का मार्ग कठिन अवश्य है, परंतु यदि विश्वव्यापी हिंदी प्रेमी इसके लिए संकल्प कर लें तो वह दिन दूर नहीं, जब हिंदी संयुक्त राष्ट्र संघ में अपना स्थान बना पाएगी ।
भारतीय उच्चायोग के द्वितीय सचिव एवं संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ. जय प्रकाश कर्दम ने कहा कि इस दिशा में हमें तब सफलता मिलेगी, जब हम स्वयं अपने घर में, बाज़ार में और सार्वजनिक स्थलों पर हिंदी बोलेंगे और हिंदी को मीडिया की, विज्ञापनों की भाषा बनाने में सफलता प्राप्त कर लेंगे । यदि हम हीन ग्रंथियों के शिकार होते रहेंगे और हिंदी बोलने में शर्म महसूस करेंगे तो हमें इस दिशा में सफलता पाने की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए । डॉ. कर्दम का आशय यह था कि हिंदी को राष्ट्र संघ में पहुँचाने के लिए हमें जनमत तैयार करने की ज़रूरत है । यह जनमत न सिर्फ भारत और मॉरीशस में, बल्कि संपूर्ण विश्व में तैयार करना होगा ।
'संयुक्त राष्ट्र में हिंदी: हमारी तैयारियाँ' पर बीज-वक्तव्य देते हुए भारत के सुप्रसिद्ध हिंदी विद्वान श्री नारायण कुमार ने कहा कि हिंदी विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र भारत की राष्ट्रभाषा और राजभाषा है तथा संसार के अधिकांश देशों में रहनेवाले भारतवंशी अपने पूर्वजों की भाषा के रूप में हिंदी का सम्मान और व्यवहार करते हैं । अत: विश्व के इतने बड़े भूभाग की भाषा को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाना विश्व जनमत की भावना को न्यायोचित अधिकार देना होगा । उन्होंने यह भी बताया कि 26 जून, 1945 को जब यू.एन.चार्टर पर हस्ताक्षर किए गए उस समय भारत स्वाधीन नहीं हुआ था, इसलिए संभवत: भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में शामिल करने पर विचार नहीं किया गया । अब संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की संख्या 51 से बढ़कर 192 हो गई है, अत: सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य के रूप में भारत को शामिल करना चाहिए तथा भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का सम्मान देना चाहिए ।
हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाए जाने के संबंध में विश्व हिंदी सम्मेलनों में पारित प्रस्तावों, भारत सरकार की केंद्रीय हिंदी समिति के निर्णय, मॉरीशस, रूस, नेपाल आदि देशों द्वारा व्यक्त समर्थन का उल्लेख करते हुए श्री कुमार ने कहा कि इस दिशा में आर्थिक, राजनयिक एवं संरचनात्मक समस्याओं के समाधान के लिए भारत सरकार तत्पर है तथा उसने एक तथ्यात्मक दस्तावेज़ तैयार करवाकर भारत स्थित विदेशी दूतावासों और विदेश स्थित भारतीय दूतावासों को भेजा है । सूरीनाम में 5 से 9 जून, 2003 तक संपन्न सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाए जाने के बारे में लिए गए निर्णय के बाद विदेश मंत्रालय में इस कार्य के लिए एक उप समिति भी बनाई गई है जो इस संबंध में कार्रवाई कर रही है । भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी यह आश्वासन दिया है कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में शामिल करवाने के लिए भारत सरकार पर्याप्त आर्थिक व्यवस्था और राजनीतिक पहल करेगी । अब आवश्यकता इस बात की है कि संयुक्त राष्ट्र में सामान्य बहुमत प्राप्त करने यानी 98 से 100 देशों का समर्थन जुटाने के लिए भारत, मॉरीशस, गयाना, त्रिनिदाद, सूरीनाम आदि देशों के साथ-साथ संसार के विभिन्न देशों में रहनेवाले भारतवंशी एकजुट होकर प्रयास करें ।
अपने सारगर्भित तथ्यात्मक व्याख्यान के अंत में श्री कुमार ने स्पष्ट किया कि खर्च का बहाना बनाकर ही काफी समय तक सिर्फ अंग्रेज़ी और फ्रेंच को संयुक्त राष्ट्र की कामकाज की भाषा बनाया गया था और स्पेनिश, रूसी, चीनी आदि भाषाएँ महज़ आधिकारिक भाषा थी । परंतु बाद में अरबी सहित इन सभी भाषाओं को यू.एन. के कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकृति मिली । अत: संसार के इतने बड़े भूभाग की भाषा को जिनके बोलनेवालों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक भाषा न बनाया जाना विश्व-जनमत का निरादर है । अब भारत की आर्थिक प्रगति के बाद यह कार्य आसान हो गया है । अत: यही उचित समय है जब भारत सरकार, प्रवासी भारतीय और भारतवंशी विश्व समुदाय मिलकर हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए संसार के देशों से समर्थन प्राप्त करे ।
विश्व हिंदी सचिवालय द्वारा इस दिशा में की गई पहल के लिए उन्होंने सचिवालय के नव-नियुक्त महासचिव डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्र के प्रति आभार प्रकट किया और कहा कि संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए समर्थन जुटाना, इस सचिवालय के लिए मॉरीशस एवं भारत सरकार द्वारा प्रदत्त दायित्वों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य है । अत: सचिवालय को संसार के प्रमुख देशों में सेमिनार, संगोष्ठियाँ आयोजित कर इसके लिए जनमत तैयार करना चाहिए । डॉ. मिश्र की कार्य-शैली और हिंदी भाषा के प्रति निष्ठा एवं समर्पण भाव का उल्लेख करते हुए श्री कुमार ने कहा कि मॉरीशस एवं भारत सरकार इस महान उद्देश्य को पूरा करने के लिए विश्व हिंदी सचिवालय को पूर्ण सहयोग देंगे ताकि प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन में भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और मॉरीशस के प्रधानमंत्री डॉ. सर. शिवसागर रामगुलाम का संकल्प साकार हो सके ।
संगोष्ठी के सफल आयोजन के लिए आदरणीय श्री रामनाथ जीता एवं डॉ. कृष्ण कुमार झा ने विश्व हिंदी सचिवालय को बधाई देते हुए अपने उद्गार प्रकट किए । मॉरीशस के सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार श्री इंद्रदेव भोला इंद्रनाथ ने अपनी कुछ हिंदी पुस्तकें श्री नारायण कुमार को भेंट की । संगोष्ठी में उपस्थित कुछ विद्वानों ने खुले सत्र के दौरान डॉ. कर्दम और श्री नारायण कुमार से कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न भी किए, जिनके उत्तर विद्वानों ने दिए ।
इंदिरा गांधी भारतीय सांस्कृतिक केंद्र के सहयोग से आयोजित इस संगोष्ठी में श्रीमती अनिता अरोड़ा, डॉ. अभिमन्यु अनत, डॉ. बीरसेन जागासिंह, श्री सत्यदेव प्रीतम, डॉ. उदय नारायण गंगू, श्री राजनारायण गति, श्री प्रह्लाद रामशरण, श्री सोनालाल नेमधारी, पं. हनुमान गिरधारी, श्री नारायणपत दसोई, श्री वेणीमाधव रामखेलावन, श्री बलवंतसिंह नौबतसिंह, श्री दीपक नोबिन, सुश्री अनुपमा चमन, डॉ. रेशमी रामधनी, श्री लखनलाल मोतिया, श्रीमती अंजु घरभरन, श्री सूर्यदेव सिबोरत सहित अनेक विद्वान उपस्थित थे ।
संगोष्ठी के बाद सचिवालय द्वारा आमंत्रित स्थानीय कवियों, सुश्री भानुमति नागदान, श्री अजामिल माताबदल, श्री राज हीरामन, श्री धनराज शम्भु, डॉ. बीरसेन जागासिंह, श्री गुलशन सुखलाल, श्रीमती कल्पना लालजी, श्रीमती सीता रामयाद, श्री विनय गुदारी, डॉ. सुरीति रघुनंदन, डॉ. राजरानी गोबिन एवं डॉ. अलका धनपत ने अपनी-अपनी कविताओं का सस्वर पाठ किया ।
इस तरह विश्व हिंदी सचिवालय का द्वितीय वर्षगांठ एक सौहार्दपूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ ।
- विश्व हिंदी सचिवालय की रिपोर्ट
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