12 मार्च, 2015 को भारत गणराज्य के प्रधान मंत्री, महामहिम श्री नरेंद्र मोदी तथा
मॉरीशस गणराज्य के प्रधान मंत्री, माननीय सर अनिरुद्ध जगन्नाथ, जी.सी.एस.के.,
के.सी.एम.जी., क्यू.सी. के कर कमलों द्वारा विश्व हिंदी सचिवालय मुख्यालय निर्माण
का आधिकारिक शुभारंभ, फ़ेनिक्स, मॉरीशस में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। समारोह का आयोजन
मॉरीशस सरकार द्वारा किया गया था।
पर शिक्षा व मानव संसाधन, तृतीयक शिक्षा वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्री माननीय श्रीमती
लीला देवी दुखन-लछुमन व मॉरीशस सरकार के अन्य अनेक माननीय मंत्रीगण तथा मंत्रालयों
के स्थायी सचिव व अधिकारीगण, मॉरीशस के हिंदी विद्वान, साहित्यकार, लेखक शैक्षणिक,
प्रचारक, प्राध्यापक व छात्र तथा हिंदी प्रेमियों ने समारोह की शोभा बढ़ाई। महामहिम
मोदी जी के साथ आई हुई प्रतिनिधि मंडल में भारतीय पक्ष की ओर से भारतीय उच्चायोग के
अधिकारीगण, भारत सरकार के मंत्रालयों के अधिकारीगण व पत्रकार भी समारोह में उपस्थित
रहे।
इस शुभावसर पर भारत गणराज्य के प्रधान मंत्री, महामहिम श्री नरेंद्र मोदी का
वक्तव्य विश्व हिंदी सचिवालय तथा मॉरीशस की जनता के लिए अत्यंत प्रभावशाली व
प्रेरणादायक रहा। उन्होंने शुरू करते हुए कहा एक प्रकार से 1.2 मिलियन के देश को
1.2 बिलियन का देश गले लगाने आया है। सर जगन्नाथ जी के शब्दों को उद्धृत करते हुए
उन्होंने कहा कि ये लघु शब्द सुनते ही पूरे तन-मन में एक वाइब्रेशन की अनुभूति होती
है, एक अपनेपन की अनुभूति होती है। आगे उन्होंने यह इच्छा व्यक्त की कि सचिवालय के
मुख्यालय निर्माण के आधिकारिक शुभारंभ के पश्चात इस कार्य में बिल्कुल देरी न हो-
आज जिसकी शुरूआत हो, अभी तय कर लें कि इतनी तारीख को उसका उद्घाटन हो जाए।
हिंदी भाषा के प्रचार व उन्नयन में मॉरीशस के योगदाक का उल्लेख करते हुए माननीय
मोदी जी ने कहा मॉरीशस ने हिंदी साहित्य की बहुत बड़ी सेवा की है। सार्क देशों में
हिंदी भाषा के प्रति प्रेम रहा है। अनेक भाषा-भाषी लोगों ने हिंदी भाषा को सीखा है।
दुनिया की अनेक युनिवर्सिटीज़ में हिंदी सिखाई जाती है। कई पुस्तकों का हिंदी में
अनुवाद हुआ है। कई भाषाओं की किताबों का अनुवाद हुआ है। लेकिन जैसे मूर्धन्य
साहित्यकार दिनकर जी कहते थे कि मॉरीशस अकेला एक ऐसा देश है जिसका उसका अपना हिंदी
साहित्य है। ये मैं मानता हूँ, बहुत बड़ी बात है। 2015 के प्रवासी भारतीय दिवस का
उदाहरण लेते हुए भी उन्होंने मॉरीशस के हिंदी साहित्य की प्रशंसा की।
उन्होंने कहा दुनिया भर में फैले हुए भारतीयों ने जो कुछ भी रचनाएँ की हैं, अलग-अलग
भाषाओं में की हैं, उसकी प्रदर्शनी थी। और आज गर्व से कहता हूँ कि विश्व भर में
फैले हुए भारतीयों के द्वारा लिखे गए साहित्य की इस प्रदर्शनी में डेढ़ सौ से ज़्यादा
पुस्तकें मॉरीशस की थीं। यानि यहाँ पर हिंदी भाषा को इतना प्यार किया गया है, उसका
इतना लालन-पालन किया गया है, उसको इतना दुलार मिला है, शायद कभी-कभी हिंदुस्तान के
भी कुछ इलाके होंगे जहाँ इतना दुलार नहीं मिला होगा जितना मॉरीशस में मिला है।
मॉरीशसीय हिंदी साहित्य तथा हिंदी भाषा की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा मैं मानता
हूँ कि मॉरीशस में जो हिंदी साहित्य लिखा गया है, वो कलम से निकलने वाली स्याही से
नहीं लिखा गया है। मॉरीशस में जो साहित्य लिखा गया है, उस कलम से, यहाँ के श्रमिकों
के पसीने की बूँद से लिखा गया है। मॉरीशस का जो हिंदी साहित्य है, उसमें यहाँ के
पसीने की महक है। और वो महक आने वाले दिनों में साहित्य को और नया सामर्थ्य देगी।
उन्होंने यह इच्छा भी व्यक्त की कि जो सचिवालय बन रहा है, वहाँ टेक्नॉलॉजी का भी
भरपूर उपयोग हो।
अपने वक्तव्य को समाप्त करते हुए उन्होंने कहा यह मेरे लिए बड़ा गर्व का विषय है कि
मॉरीशस की धरती पर विश्व हिंदी सचिवालय के नए भवन का निर्माण हो रहा है। भाषा
प्रेमियों के लिए, हिंदी भाषा प्रेमियों के लिए, भारत प्रेमियों के लिए और महान
विरासत जिस साहित्य के भीतर नवपल्लवित होती रही है, उस महान विरासत के साथ विश्व को
जोड़ने का जो प्रयास हो रहा है, उसको मैं बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ। मॉरीशस
गणराज्य के प्रधान मंत्री, माननीय सर अनिरुद्ध जगन्नाथ, जी.सी.एस.के.,
के.सी.एम.जी., क्यू.सी. ने हर्ष के साथ कहा कि आज का दिन भारत और मॉरीशस की दोस्ती
के लिए, हिंदी भाषा के लिए और हिंदी की दुनिया में तथा भारत सहित समस्त हिंदी
प्रेमियों के लिए एक ऐतिहासिक दिन है।... मॉरीशस और भारत के संबंध हर दृष्टि से
बहुत ख़ास हैं। इसलिए कि ये संबंध व्यापार का, राजनीति का और डिप्लोमेसी का तो है ही
लेकिन उससे बढ़कर यह संबंध दिल का है। हमारे पूर्वजों का इतिहास और उनसे मिली हुई
सभ्यता और संस्कृति, हमारे दिलों को जोड़ता है।
आगे भाषा के महत्व के साथ-साथ मॉरीशस के इतिहास, हमारे पूर्वजों के संघर्ष को याद
करते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा संस्कृति का बहुत अहम हिस्सा है। भारतीय
भाषाएँ मॉरीशस की सांस्कृतिक पहचान के अटूट हिस्से हैं... इतिहास के हिस्से हैं।
साथ ही ये हमारे भविष्य के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस भाषाओं के महत्व को
जानते हुए ही, मॉरीशस ने हमेशा से सभी भारतीय भाषाओं की रक्षा और प्रचार के लिए खूब
मेहनत की है। हमारे पूर्वजों ने जब मॉरीशस में अपने अधिकारों के लिए, अपने देश की
आज़ादी के लिए लड़ाई की तब उस लड़ाई में भाषा की लड़ाई भी शामिल थी।
आगे उन्होंने कहा कि उन्हें गर्व है कि इतने कम समय में सचिवालय ने अपने काम से
हिंदी की दुनिया में एक खास जगह बना दी है। मुझे पूरा विश्वास है कि हेडक्वॉटर्स के
बनने से सचिवालय को नई ऊँचाई तक पहुँचने की शक्ति मिलेगी और दोनों के सहयोग से ये
अपने उद्देश्य को पूरा कर पाएगा। अंत में उन्होंने हिंदी को राष्ट्रसंघ में
न्यायोजित स्थान दिलाने के भारतीय प्रयासों के बारे में विश्वास दिलाया- मॉरीशस की
जनता और सरकार यह वचन देती है कि हिंदी को उस ऊँचाई पर पहुँचाने के लिए जब भी आप
आवाज़ उठाएँगे ... हम आपके साथ होंगे।
कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए विश्व हिंदी सचिवालय के कार्यवाहक महासचिव श्री
गंगाधरसिंह सुखलाल ने मुख्य अतिथि व सभागर में उपस्थित सभी हिंदी प्रेमियों का
हार्दिक स्वागत किया। श्री सुखलाल ने विश्व हिंदी सचिवालय के 7 वर्षों के कार्यकाल
व उपलब्धियों का ब्यौरा दिया साथ ही सचिवालय के कार्यों, गतिविधियों व उपलब्धियों
पर सुन्दर वीडियो प्रस्तुति हुई।
महामहिम श्री नरेंद्र मोदी तथा सर अनिरुद्ध जगन्नाथ ने स्मारक पट्ट का अनावरण करते
हुए विश्व हिंदी सचिवालय के मुख्यालय निर्माण का आधिकारिक शुभारंभ किया। अवसर पर
महात्मा गांधी संस्थान तथा इंदिरा गांधी भारतीय सांस्कृतिक केंद्र के कलाकारों
द्वारा महाकवि जयशंकर प्रसाद की 'अरुण यह मधुमय देश हमारा' व प्रसिद्ध मॉरीशसीय कवि
श्री सोमदत्त बखोरी की 'मॉरीशस की सृष्टि' कविता पर आधारित एक संगीत व नृत्य
प्रस्तुति भी हुई। कार्यवाहक महासचिव श्री गंगाधरसिंह सुखलाल द्वारा धन्यवाद ज्ञापन
के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।
- विश्व हिंदी सचिवालय की रिपोर्ट
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